यह सकल जगत एक रंगभूमि
यह सकल जगत एक रंगभूमि
यह सकल जगत एक रंगभूमि है
जहां अभिनय करते हमें जाना।
न लेकर आते न ले कुछ जाते,
फिर क्या खोना और क्या पाना ?
मानव जनित कुदरती संसाधन ,
वर रूप में हम सबने ही हैं पाए।
निज सुविधा के हित बदला इनको,
प्रकृति मां को अगणित घाव लगाए।
क्षत विक्षत किया हरियाला आंचल,
बहु वन्य जीव आश्रय से रहित बनाए।
दम घोंटू हो गया है सारा वायु मण्डल,
जहरीली गैसें हम सब खुद ही मिलाए।
उपदेश ज्ञान है औरों की ही खातिर बस,
कभी कहीं कोई कष्ट नहीं हमें उठाना।
यह सकल जगत एक रंगभूमि है
जहां अभिनय करते हमें जाना।
न लेकर आते न ले कुछ जाते,
फिर क्या खोना और क्या पाना।
न्यूनतम श्रम करना सब ही चाहें,
प्रतिफल चाहते हैं सभी अपार।
कर्त्तव्यों की तो सुधि ही बिसराते,
याद रखते केवल अपने अधिकार।
खुद के लिए सबसे सम्मान चाहिए,
खुद करें चाहे सबका ही तिरस्कार।
कण हर भी कष्ट उठाना न है हमको,
सुविधा की गारण्टी हमको दे सरकार।
अपने सब दोषों को करते हुए अनदेखा,
चीखकर कहते हैं बड़ा ही बुरा है ज़माना।
यह सकल जगत एक रंगभूमि है
जहां अभिनय करते हमें जाना।
न लेकर आते न ले कुछ जाते,
फिर क्या खोना और क्या पाना।
रंगभूमि का मंच है जगत जहां हर,
ध्वनि की वैसी ही प्रतिध्वनि आती है।
शुभ अशुभ के बदले समतुल्य शुभता,
अशुभता निश्चित हमको मिल जाती है।
लालसा भौतिक संसाधनों की हमसे,
सब अर्थ अनर्थ करवाती चली जाती है।
निज अभिनय के यश अपयश की गाथा
जगत के रंगमंच से जाने पर गाई जाती है।
प्यार के बदले मिलता हैं प्यार यहां और,
जो दिया है वही तो देता हमें ज़माना है।
यह सकल जगत एक रंगभूमि है
जहां अभिनय करते हमें जाना।
न लेकर आते न ले कुछ जाते,
फिर क्या खोना और क्या पाना।