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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

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Ratna Kaul Bhardwaj

Inspirational

हम निर्जीव नही

हम निर्जीव नही

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है धरती का अस्तित्व जितना पुराना

पुराना उतना ही हमारा इतिहास है

ठहरे थे एक जगह प्रकृति को संजोए

आज अस्तित्व बना हमारा उपहास है


सर से दामन तक हरियाली लिए

रुख देते आये हैं मतवाली हवाओं को

लंभी सफेद चादरों को समेटे हुए

पथ देते आये हैं अंगिन्नत धाराओं को


हम है जीवन रक्षक कल्पना से परे

अंतरिम काल से हम वचनबद्ध भी हैं 

हम ही मेघ, हम ही बरसात की चादरें

हम ही छाँव, हरियाली हम से ही है


अपनी इस सृष्टि को संतुलित रखना

भिन्न हमारे बिल्कुल असंभव है

सूक्ष्म हो या हो विशाल जीव

जीवन अंश हमसे ही संभव है


हम निर्जीव नही है, ए मानव

अहम अंश है तेरी जीवन नया का

ब्रह्माण्ड का एक अटूट हिस्सा हम

परछाई है प्रकृति की काया का


सुंदर वातावरण, शीतल हवाओं का

अंगिन्नत मीलों के हम स्वामी थे

भली भांति जानते थे दात्यत्व अपना

न कभी अपने कद पर अभिमानी थे


विकास होता रहा, वक़्त की मांग थी

हमें चीर कर सड़कों का झाल बिछाते गए

कहीं हमें तोड़ा, कहीं पुर ज़ोर छीला

देश, विदेश, शहर, कस्बे मिलाते गए


हम खुश थे भिन्न किसी आपत्ति के

विकास हो रहा था जब तक निरंतर

अब तिरस्कार सह रहे हैं तन मन से

खोदे जा रहे हो हमें अंदर ही अंदर


न खोदो, न कुरेदो, हमारे पाक दामन को

सुरक्षित हो तुम, जब तक हम अखंड है

हम स्रोत हैं जीवन की हर शैली का

वचनबद्ध हैं हम, न कोई पाखंड है


विकास के नाम पर हमें और मत छीलो

कण कण देखो हमारा रिसकता जा रहा है

मची हुई है देखो त्राहि त्राहि जनता में

बिन दोष खण्ड हमारा खिसकता जा रहा है


गर अस्तित्व हमारा यों ही मिटाते रहे

पूछ रहें हम, ज़िंदा कैसे तुम  रह पाओगे

हमसे ही धारा, हवा हरियाली हमसे

हम नही तो सागर को भी खाली पाओगे


जन-जीवन तहस नहस है हमारे रिसने से

पर बताओ इसमें हमारा कहाँ कसूर है

अरे जागो और विकास के विकल्प ढूँढ़ो

प्रकृति को भी यही सब मंज़ूर है


प्रकृति व प्रगति का संतुलन वनाये रखो

धरती के कण-कण की मांग यही है

मुख में हमारी वाणी नही, एहसास है

हम आक्रोशित नही, दशा हमारी दयनीय है


हमें फिर से सजाओ, फिर से संवारो

वृक्ष लगाकर भर दो दामन हमारा

है हरियाली हमारी जन जीवन का सोत्र

हमसे ही है ज़िंदा धरती का कोना कोना......


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