ढलती हुई शाम
ढलती हुई शाम
जीवन की तेरी ढल रही यह शाम है
कुछ तो कर तू यहां जमाने में काम है
जग मे तू यूँ ही आया,यूँ ही चल दिया,
क्या बस यही तेरी यहां पर पहचान है
नही रे साखी,तू ठहरा अलग इंसान है
तुझे फ़लक तक का पाना मुकाम है
बस सही वक्त पर भर ले तू उड़ान है
तू उसवक्त कैसे कमायेगा यहां नाम है
जब तेरे जिस्म में न होगी कोई जान है
जीवन की तेरी ढल रही यह शाम है.
कर तू मेहनत का कुछ ऐसा काम है
शूल भी महके बस लेकर तेरा नाम है
पर याद रख,यह दुनिया बड़ी शैतान है
गरीबी में मजाक उड़ाएंगे तेरा तमाम है
जिनके इरादों में न हो ज़रा भी जान है
वो पाते नही कभी कोई मंजिल आम है
दरिया में प्यासा रहते बस वो इंसान है
जो रहते दुनिया मे दूसरे के गुलाम है
जो आजाद ख्यालों के गुलफाम है
ढलती शाम का भी करते आदाब है
जीवन की तेरी ढल रही यह शाम है.
कुछ तो ले यहां तू साखी हरि नाम है
उन्हें छोड़कर झूठी दुनिया तमाम है
एकमात्र श्री हरि देंगे तुझे आराम है
निष्काम कर्म कर,दे उन्हें लगाम है
फिर वो उदासी होगी बड़ी हैरान है
जब देखेगी तेरे लबो पर मुस्कान है
खिल उठेगी पतझड़ में तेरी शाम है.
जब यहां दीपक जैसी रोशनी करेगा,
तू खुद से साखी चेहरा अनजान है
जीवन की तेरी ढल रही यह शाम है
नेकी का कर ले कुछ तो तू काम है
जिससे अंतिम समय तू न घबराये
मौत को दे सके तू कोई ईनाम है
जीवन की भले ढल रही यह शाम है,
तुझे खोलना भीतर वो रोशनदान है
जिससे चमके अन्तः घट आसमान है.