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Dharmender Sharma

Inspirational

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Dharmender Sharma

Inspirational

मातृभाषा हिंदी

मातृभाषा हिंदी

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हे मातृ भाषा से प्रेम जिसे, 

उसने निज स्वरूप को जान लिया, 

हिंदी भाषा को जिसने त्यागा,

उसने देशद्रोह का पाप किया ।

गलत नहीं कई भाषाओं का ज्ञान ,

पर हिंदी भाषा क्यों भूल रहे तुम,

सुकून नहीं मिलेगा तब तक ,

जब तक मातृभाषा का गर्व न किया।

ऐसी मातृभाषा हिंदी ,

सब भाषाओं को जिसने थामा,

कभी तत्सम ,कभी तद्भव ,

कभी देशज ,विदेशज को स्वीकार किया ,

अंग्रेजी ,उर्दू ,फारसी ,संस्कृत ,

सब बोलियों को भी मान दिया ,

ऐसी भारत जननी भाषा,

तुम्हें नमन नतमस्तक शीश किया ।

गुलामी की जंजीरें टूटी ,

वीर सपूतों ने जो बलिदान दिए ,

हिंदी को बचाने की खातिर ,

संविधान में राजभाषा का नाम दिया ,

14 सितंबर 1949 से 71 वर्ष बीत गए ,

आज भी हिंदी का वजूद खोया ,

है बिलख रही देख अपनी हालत पर ,

गुलाम मानसिकता के कारण ,

हिंदी कहने में क्यों संकोच किया ,

पूछ रही भारत जननी ,

क्यों स्वाभिमान को छोड़ दिया ?

लॉर्ड मैकाले की शिक्षा ने ,

लोगों के मन पर राज किया ,

छोड़ मातृभाषा को तुमने ,

विदेशी भाषाओं से प्रेम किया ?

या तो देश प्रेम नहीं ,

या स्वार्थ ने भाषा पर पूर्ण अधिकार किया ,

पर याद रखो उन वीरों को ,

जो हिंदी के लिए मर मिट गए ,

हिंदी से हिंदुस्तान रहेगा ,

यह शिक्षा हम सब को देकर गए,

मूल है देश की हिंदी भाषा,

जिसने सबको बोलना सिखाया ,

मातृभाषा से प्रेम करो तुम,

जिसने सबको जननी सा अपनाया ।

हिंदी है हम हिंदी हैं हम

हिंदी से हिंदुस्तान बना। 


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