Dharmender Sharma

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ईश्वर भक्ति

ईश्वर भक्ति

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ईश्वर भक्ति है मुक्ति माया ,

बंधन को जो है काटे ,

प्रेम ,दया और सत्य को,

जीवन में सदा स्वीकारे ।


असत्य को कभी ना बोले,

न स्वार्थ ,न आडंबर मान,

 कभी किसी को कष्ट न दे , 

 सुलझाए उलझे हुए काम ।


मान –सम्मान ,पद और माया, 

 ये सब करते भक्ति का ह्रास ,

जो जन जीते परहित कारज ,

वही ईश्वर भक्त अविराम।


जो मन के दौड़े– दौड़े रहते,

नहीं मिलेंगे कभी उनको राम,  

रूप अनेक भले ही उनके,

सांस– सांस में बस रहे समान ।


सावन में मेघ बरसते जैसे,

वैसे प्रभु कृपा हो रही अपार,

दंभ छिपा हो मन में अगर,

कैसे देखेंगे प्रभु श्री राम ।


 जोत जगे जब प्रेम की ,

तभी दिखेंगे सब में भगवान,

 मिल जाए पल भर में भी,

मन में हो श्रद्धा और विश्वास। 


 सत्य , करुणा, प्रेम, दया,

 परहित सदा करते रहना,

 न किसी पर हिंसा करना ,

वो ईश्वर भक्ति अचल स्वीकार।


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