ईश्वर भक्ति
ईश्वर भक्ति
ईश्वर भक्ति है मुक्ति माया ,
बंधन को जो है काटे ,
प्रेम ,दया और सत्य को,
जीवन में सदा स्वीकारे ।
असत्य को कभी ना बोले,
न स्वार्थ ,न आडंबर मान,
कभी किसी को कष्ट न दे ,
सुलझाए उलझे हुए काम ।
मान –सम्मान ,पद और माया,
ये सब करते भक्ति का ह्रास ,
जो जन जीते परहित कारज ,
वही ईश्वर भक्त अविराम।
जो मन के दौड़े– दौड़े रहते,
नहीं मिलेंगे कभी उनको राम,
रूप अनेक भले ही उनके,
सांस– सांस में बस रहे समान ।
सावन में मेघ बरसते जैसे,
वैसे प्रभु कृपा हो रही अपार,
दंभ छिपा हो मन में अगर,
कैसे देखेंगे प्रभु श्री राम ।
जोत जगे जब प्रेम की ,
तभी दिखेंगे सब में भगवान,
मिल जाए पल भर में भी,
मन में हो श्रद्धा और विश्वास।
सत्य , करुणा, प्रेम, दया,
परहित सदा करते रहना,
न किसी पर हिंसा करना ,
वो ईश्वर भक्ति अचल स्वीकार।