आस्था का महाकुंभ
आस्था का महाकुंभ
आर्यों की धरती पर लगा,
सनातन का यह महाकुंभ है,
आगाज है श्रद्धा और प्रेम का,
पिपासाओं को करता तृप्त है ।
साधु, संतों, सन्यासी, और,
गृहस्थियों का है मनभावन,
देता ज्ञान, वैराग्य उनको,
कर देता भक्ति से पावन ।
मकरेंदूर्क गुरु वृषभ जब,
तीनों मिलते काली रात,
तब जानो की श्रद्धा का,
लगने वाला है मेला आज ।
बारह कुंभ से महाकुंभ है,
ऐसा योग है मिलता कम,
तन की डुबकी मात्र से ही,
दूर होते मन भी सबके गम ।
ईश्वर भी नर बनकर आते,
महाकुंभ का स्नान है करते,
धर्म ध्वजा ले चलते मार्ग पर,
भक्ति,ज्ञान से है भर देते ।
आस्था का महाकुंभ का जो,
सभी पंथों का करता मान,
सबको कर देता है पावन,
धो देता है सबके पाप-संताप।
जो निर्मल हम सबको करता ,
उसको हम भी स्वच्छ रखें ,
मान करे उस आस्था का ,
जो सबका सम्मान करें।
