*कविता* :–
*"नहीं चाहिए ऐसी आजादी "*
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो मन से कमजोर करे,
साहसिक वीरों की भूमि को,
घृणित सोच से बदनाम करे ।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी जो,
अपने घर में भयभीत करे,
अंधा कानून वाह– वाही कमाए,
कुशासन से है प्रीत बढ़ाए।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो मन को है गुलाम रखे,
वीर– सपूतों के बलिदानों,
का जो व्यंग्य अपमान करे।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो संस्कृत बनने से रोके,
अनुशासन को न माने और,
कर्म–पथ पर बढ़ने से रोके।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो भाई को भाई ना माने,
साथ हाथ चलना न चाहे,
पीछे पीठ के छुरा हांके।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
आपस में है जो द्वेष बढ़ाए,
सुखी जीवन की डोर न बांधे,
पर दुःख में है खुशी मनाएं।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
वीरों का जो त्याग भुलाए। , बलिदानों की कीमत न समझे,
भारत मां का उपहास उड़ाए।
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो मन को कायर है बनाए,
कभी अपनों को न पहचाने,
और देश के है काम ना आए।
कहीं बेहतर लग रही गुलामी,
जो पर दुःख में है दुःखी बनाती,
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो अपनों से दूरी सिखाती ।
**कवि:* –
*धर्मेंद्र कुमार शर्मा उपाध्याय,*
*जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश ।**