जिंदगी कहां जाएं
जिंदगी कहां जाएं
क्यों बहाएं आंसू जो निभाएं रीत संसार की सारी
हर एक टूटते रिश्ते की डोर को जो थामें सारी।
वही अकेला क्यों रह जाए संसार में
निपटाए जो हर विवाद को संवाद से,
वही अपशब्दों के पुरस्कार क्यों पाए।
कब तक नेकी कर कुएं में डालें,
बता दें विद्वान सारे,
जिंदगी के मोड़ में,
मुखौटे पहने मिले राही जो,
चेहरों से उनके जो उतारे मुखौटे,
वही क्यों कपटी की श्रेणी में रखे जाएं।
गणित गड़बड़ा रहा है जिंदगी का
यह जिंदगी के समीकरण हमें समझ में ना आएं ,
नेकी के कुएं में डूब कर,
कब सांसे रुक जाएं,
कभी चाहा जी ले अपने लिए,
तभी स्वार्थी होने का तमगा एक और जड़ जाएं सीने में,
बता! जिंदगी कहां जाएं अब जीने के लिए....