ज़ख्मों के निशान
ज़ख्मों के निशान
दे जाते है जो पीड़ा मन को,
वही रहते उससे अंजान हैं।
धोखा देने वालों की यही तो,
होती असल में पहचान है।
करते हैं बेहद भरोसा हम जिन पर,
वही दे जाते ज़ख्मों के निशान हैं।
फर्क नहीं पड़ता रति भर भी उनको,
होते जिनके लिए हम परेशान हैं।
करते हैं बेइंतिहा मोहब्बत हम जिनसे,
वही आखिर करते हमारा अपमान हैं।
अपनी गलतियों का नहीं एहसास उनको,
हाय ये किस तरह के इंसान हैं?
भूलते हैं बरसों का साथ पल भर में,
और भूलते हमारा हर एहसान हैं।
मुश्किल जीना करके हमारा,
जीवन बनाते खुद का आसान हैं।