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Samadhan Navale

Tragedy Inspirational

4  

Samadhan Navale

Tragedy Inspirational

बुझने की आस में..

बुझने की आस में..

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जैसे तुफान मे अकेली तिलमिलाती

बुझने की आस में बैठी हो जैसे बत्ती ||1||

दुनिया के साथ साथ दस्तुर भी बदल गये

खिलने से पहले ही मानो फुल झर गये,

मानवीय संवेदना जाने कहां खो गई

आदमियत पर सबके तोहमत ये आ गई,

किया था इजाद जिसको दिमाग ने

उलझाया दिमाग को ही उसी ने

करती भी तो बेचारी बुद्धी क्या करती ||2||

छोटी छोटी बातो पर है उतारु

मारने पर मरने पर

भले ही बरबाद किसी का,हो जाता हो घर

सौंपी थी जिसको रक्षा की जहमत

उसी से खतरे मे है आज ये जन्नत,

मदद के हाथो को लोग जला देते है..

वफाई का सिला क्यों 'बेवफाई'देते हैं?

देने वालो को दुख हमेशा..

दुख ही मिला करते है,फिर क्युँ

बजाए झुठ के,लोग सच्चाई से डरते हैं,

ऐसा न करना कभी,मिटे जिसमे खुद की हस्ती,

बुझने की आस में, बैठी हो जैसे बत्ती ||3||

इतिहास के पन्नो मे देखो जरा झांककर

बुराईयोंको भूलकर,सच्चाईयो को जानकर

मिलेगा तुझे 'वो' एक ही चिरंतन सत्य

'इंन्सानियत'के सिवा तेरी, बाकी है सारे पगले मित्थ्य,

टिकी है जिसपे दुनिया मियां

इन्सानियत वो चीज है..

अच्छे बुरे की समझ तुझमें

बंदा तो खुद नाचीज है,

है आत्मा इंसानियत जो..

हर किसी के दिल में बसती

बुझने की आस में बैठी हो जैसे बत्ती ||4||

बंदे की एक गुजारिश है,कि

तोडने से पहले,ये सवाल है तुझसे

तोडोगे शौक से जिसे,क्या उसे जोड पाओगे?

अगर नहीं,तो तोडने का तुम्हे

नही है कुछ अधिकार,

चाहे हो वो मंदीर-मस्ज़िद,चाहे हो गुरुद्वार

दिल हो कीसी का,या हो ममता

हो चाहे किसी गरीब की बस्ती

बुझने की आस में बैठी हो जैसे बत्ती ||5||

आतंक का बीज,किसी मजहब मे तो नही है

फिर क्यों इसका पेड ये,अपनी जगह सही है?

शाखाओ को काटने से चलेगा नही अब,तो

जड से ही उखाडने का समय आ गया है,

अच्छी तरह समझ ले, दुश्मन ये हमारे

टिकने नही देंगे हम कदम जमीं पर तेरे,

भगवान की दयादृष्टी से..

वह दिन जल्दी ही आयेगा,

उन्नत भारत का सपना ले कर..

भगत सिंह हर घर आयेगा,

तब न रहेगी ये भरतभूमी..

न्याय के लिये तरसती

बुझने की आस में बैठी हो जैसे बत्ती ||6||

आज कल किसी मौत कोई मायने नही रखती |


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