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Samadhan Navale

Romance Classics

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Samadhan Navale

Romance Classics

सोचता हूँ

सोचता हूँ

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सोचा की लिखुँ,दो लब्ज तेरे बारे में,

शायद कीरण मिलेगी कोई, जिंदगी के अंधेरे मेंं

मगर..ना हाथो मेंं हीम्मत है,ना दीलमें आरजू

डर है की आ न जाऊँ,प्यार वाले घेरे मेंं 

सोचा की लिखूं दो लब्ज तेरे बारे में।


कागज पे लाना दील की बात..

आसान नही है इतना,

कुचले जाने के साथ जज्बां,

कुचला जा सकता है सपना,

दील मेंं प्यार भरा है,लेकीन

अभी पहचान नही, कौन है गैर और कौन है अपना,

इसिलिए समझ लिया प्यार तेरे इशारे मेंं

सोचा की लिखूं दो लब्ज तेरे बारे में।


ये माना की तुझे हुस्न का गुरुर है

जवानी का आलम है, आँखो में सुरुर है,

अपना बनाने को तुम्हे मेंरी जाँ

मुझसे भी जादा शायद,दील ये मजबूर है

ढुंढता हुँ जिंदगी,तेरी जुल्फो के सहारे मेंं

सोचा की लिखूं दो लब्ज तेरे बारे में।


इसिलिए भी है जरुरी लिखना..

कि अंदाज बोलकर बताने का नही है अपना,

सामने आते ही तुम्हारे, लगता है जैसे

चाँद तुम्हारे जैसा,हो एक अपना,

ख्वाबो के आंगन मेंं हो आशियाना


खो जाए जन्नत भी, प्यार के इस नजारे में

सोचा की लिखूं दो लब्ज तेरे बारे में।


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