शराफत
शराफत
अजीब सा इस जहाँ का, खेल यह निराला
हमें तो अपनी शराफत ने मार डाला ।।
सुना था लोगों से की शरीफ वो भी है
चाहा था अपनाना उन्हें वो जो भी है,
मगर खबर नहीं हमें, ये दुनिया बदल गयी
हया की लाली जो, बेहयाई बन गई
लगे है किस्मत पर लग गया है ताला
हमें तो अपनी शराफत ने मार डाला ।।1।।
जैसे भी थे, अच्छे थे हम, जहाँ से इस निराले
चाहा था हमको 'अपना समझ कोई अपना ले'
आदर्श टूटे फूटे थे, मगर खयालात वाले,
कहते थे सीधा-साधा हमें, कोई भोले-भाले
'ना' से उसकी स्वप्न महल का टूट गया माला
हमें तो अपनी खुद की शराफत ने मार डाला ।।2।।
उम्मीद पर दुनिया ये जीती, जीता जहान है,
जैसा है.. आदमी है....हर नेक इंसान है
आदमी ना छु सके, जिसे वो आसमान है,
चाहकर पूरे न हो, पागल वो अरमान है
अपनी भी जिंदगी में कभी होवे उजाला
अजीब सा इस जहाँ का खेल यह निराला
हमें तो अपनी खुद की शराफत ने मार डाला ।।3।।

