उम्मीद.......
उम्मीद.......
जिंदगी में इश्क़ कि खोज पर निकले थे हम
पर बेवफ़ाई ने गले लगा लिया,
क्या नाराजगी थी हमसे उस खुदा को कि
हमें ही खुद का कसूरवार बना दिया
अंजान रास्तों पर पहले अकेले घुमा करते थे हम
पर अब परछाई को देखकर भी डर जाते है ,
ऐसे कितनी रातें गुजर गई हैं उसकी
परछाई से पीछा छुड़ाने में
यह तो हम अब भी गिन नहीं पाते है
प्यार पर तो कभी भरोसा करने की कोशिश नहीं कि
और किया तो अपने आप पर का भी भरोसा खो बैठे है ,
ऐसी मुश्किलों से गुजरना क्यों पड़ता है
सच्चा प्यार करने वालों को इसी सोच में खो गए है
उसका इंतज़ार तो नहीं पर फिर भी क्यों
आंखें बिना पलकें झुकाएं राह तकती रहती है,
शायद आज भी आंसुओं को उसके तस्वीर का
सहारा ढूंढने कि उम्मीद बाकी दिखती है।