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Kavita Verma

Drama

3  

Kavita Verma

Drama

बचपन

बचपन

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सूरज की पहली किरण के साथ 

आँगन का दरवाजा खोल 

चिड़ियों के लिए रखते दाना पानी 

माँ लेती हैं एक गहरी साँस। 


रसोई करती माँ 

एक उचटती नज़र डाल ही लेती है 

आँगन में। 


उसकी पुकार होने पर 

आई कहकर दौड़ते हुए 

क्षण भर को  देखती है 

चिड़ियों का कलरव। 


दोपहर में सब काम से निबट 

आँगन का दरवाजा बंद करते 

ठिठक कर रुक जाती है 

खोई सी निहारा करती है 

चिड़ियों की चपलता। 


इस तरह अपनी तमाम जिम्मेदारियों के बीच 

कुछ पल अपना बचपन जी लेती है माँ। 



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