ये शक्ति है मुझमें किंतु सृष्टि चलती रहे और सभ्यताएँ फैलती रहें इसलिए मैं स्वयं ही डूबती हूँ और ... ये शक्ति है मुझमें किंतु सृष्टि चलती रहे और सभ्यताएँ फैलती रहें इसलिए मैं स्व...
एक कविता...! एक कविता...!
ऐ ज़िन्दगी तू थोड़ा अब रुक जा, ज़रा साँस लेने दे इस बच्चे को...! ऐ ज़िन्दगी तू थोड़ा अब रुक जा, ज़रा साँस लेने दे इस बच्चे को...!
उलझी गांठों को खोलूँ मैं , टूटी कड़ियों को जोडूं ! उलझी गांठों को खोलूँ मैं , टूटी कड़ियों को जोडूं !
झर झर बहता ये पानी, जैसे सुना रहा हो कोई गुम हो चुकी कहानी। झर झर बहता ये पानी, जैसे सुना रहा हो कोई गुम हो चुकी कहानी।
नदियों की, झिलमिल-सी धारा, टकराती इक से, इक धारा... नदियों की, झिलमिल-सी धारा, टकराती इक से, इक धारा...