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Prapanna Kaushlendra

Drama

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Prapanna Kaushlendra

Drama

नदी - सी थी तुम

नदी - सी थी तुम

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नदी - सी थी तुम

याद है मुझे,

धीरे - धीरे किनारों से टकराती,

बहती रही न जाने किन - किन कंदराओं,

उपत्यकाओं से गुज़रती रही,

बिन कुछ कहे।

धार में तेरे,

निमग्न होती रही पीढ़ी,

बहती रही हमारी उम्र से आगे,

निकल गई। 

हम तुम्हें छोड़ बस गए नगर - नगर,

शहर - दर - शहर,

लेकिन तुम संग रही,

हमेशा ही रगों में दौड़ती रही।

तुम नदी थी

तुम्हें समंदर में जाना ही था,

मिलना ही था सागर में,

तुम्हें ख़ुद को खोना नहीं था। 


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