उठती गिरती बहती लहरें जाने क्या-क्या कहती लहरें गूँज रहा बस शोर तुम्हारा बाकी सब कुछ बिसर गयी मैं... उठती गिरती बहती लहरें जाने क्या-क्या कहती लहरें गूँज रहा बस शोर तुम्हारा बाकी...
और कुछ देने को आतुर हो अपने अन्दर भरे पड़े अथाह गहन धन कोष से शंख सिपियां बिखेर जाती हैं। और कुछ देने को आतुर हो अपने अन्दर भरे पड़े अथाह गहन धन कोष से शंख सिपियां बिख...