STORYMIRROR

माला

माला

1 min
7.2K


हो कर दूर बिखर गई मैं !

माला से टूट बिखर गयी मैं !

थी मेरी पहचान भी कोई,

था मेरा अरमान भी कोई,

हुआ चूर वजूद जो मेरा,

इस भीड़ मे, किधर गयी मैं !

माला से...


जब से मेरा ध्यान है टूटा,

मुझसे मेरा हर काम है छुटा,

अब तेरे रंग में रंगी हुयी है !

अपने रंग से नितर गयी मैं

माला से...


अर्पित जीवन का तुमको हरपल

मन में उठी हलचल हर क्षण

तोड़ के हर रिश्ते का बंधन

अपने आप से बिगड़ गयी मैं

माला से ...


मेरे जीवन का तुम प्रकाश हो,

तुम मेरी जमीं, तुमही आकाश हो

ढूँढ रही हूँ हरपल तुमको

तब से अब तक जिधर गयी मैं

माला से...


आ जाओ अब तुम जीवन में

देख रही हूँ मैं दर्पण में

देख यूं खुद निहार रही हूँ

और मन ही मन मे निखर गयी मैं

माला से...


उठती गिरती बहती लहरें

जाने क्या-क्या कहती लहरें

गूँज रहा बस शोर तुम्हारा

बाकी सब कुछ बिसर गयी मैं

माला से...!




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama