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Geeta Upreti Gupta

Abstract

4.9  

Geeta Upreti Gupta

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फिर मेरा जीवन खाली क्यों ?

फिर मेरा जीवन खाली क्यों ?

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तेरी हो गई गोद भराई

तेरी बाहों में भर आई

लाढ लड़ाए तूने मुझको

मैं भी मंद मंद खूब मुस्काई

धन पराया कहकर मुझको


मुझको तूने काम सिखाया

ढल जाऊ मैं हर ढांचे में

ऐसा मुझको पाठ पढाया

पकवानों की हांड़ी भाई की

फिर मेरी आधी थाली क्यों ?


जीवन तेरा भरा है मैंने

फिर माँ मेरा जीवन खाली क्यों ?

तेरे आँगन में मैं आई

तूने बाटी खूब मिठाई


कंधे में बैठाकर अपने

बाबा तूने सैर कराई

भैया तो विदेश पढ़ाया

पर पढ़ना मेरा तुझे ना भाया

आज़ादी मिली भाई को


मेरे हिस्से घर की छाया

कांच के जैसे सिजोना था

तो ऐसी गुड़िआ पाली क्यों ?


जीवन तेरा भरा है मैंने

फिर बाबा मेरा जीवन खाली क्यों ?

तेरे संग में खेली कूदी

तेरी गलती पर सज़ा भी सह दी।


तू बाबा का लल्ला न्यारा

मैं तो घर की चिड़िया कैदी

हर गलती पर तुझे बचाया

मैं तेरे जीवन की भेदी


तू म

ायका का एक सहारा

फिर मैं बहना तेरी गाली में क्यों ?

जीवन तेरा भरा है मैंने

फिर भैया मेरा जीवन खाली क्यों ?


मैं तेरे जीवन में आई

संग तेरे जब हुई सगाई

कर्जदार कर पिता भाई को

घर मेरे भी बजी शहनाई


जब बड़े बुजुर्गो की बारी आई

घर गृहस्थी की तरकीब सुझाई

तुझे सारा आराम मिल गया

मेरे हिस्से जिम्मेदारी आई


मेरा प्रेम तेरी मदिरा ले गई

और मैं प्रेमिका मधुशाला की प्याली क्यों ?

जीवन तेरा भरा है मैंने

फिर प्रिय मेरा जीवन खाली क्यों ?


पाकर मुझसे मेरी काया

मैंने तुझको पढ़ा लिखाया

खुद धुप में झुलस गई मैं

पर दी तुझको ठंडी छाया


तेरे सारे शोक पिरोये

फिर क्यों तूने किया पराया

एक बिस्तर की जगह मिली ना

ऐसा भी क्या महल बनाया


तू बन बैठा मालिक बंगले का

फिर मैं माँ वृद्ध आश्रम की माली क्यों ?

जीवन तेरा भरा है मैंने

फिर बेटा मेरा जीवन खाली क्यों।


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