जब बैसाखी ने मुझसे कहा
जब बैसाखी ने मुझसे कहा
मेरी भूमिका तभी तक अहम है
जब तक तुम्हारे पांव बेजान है।
खड़े होने लगे जब तुम अपने पांव पर
फिर मेरा क्या काम है ?
रख दो उठाकर कबाड़ में
या फिर बेच दो भंगार से
कबाड़ी के बाजार में
याद मत करो कभी
वो दिन लाचारी के
जब ....
खड़े नहीं हो सकते थे
ना ही चल सकते थे दो कदम
अब जान आ गई है तुम्हारे पांव में
चल सकते हो, नाच सकते हो और
सैर कर सकते हो पूरी दुनिया की
अपने कदमों से चलकर
हटा दो इसे
अब बेकार हुई बैसाखी
भुला दो
उन बेबसी के दिनों को
जब पल पल हर पल तलब होती थी तुम्हें मेरी
थामें रहते थे हमेशा मुझे।
अपने पांवों पर से भरोसा उठ गया था
यकीन सारा मुझ पर हो गया था
मान कर एक एहसान
कर दो विदा
हो जाओ उससे जुदा
कल जो तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत थी
वो उम्र भर की कमज़ोरी बन जाएगी
फिर से तुम्हारे पांवों की ताकत खत्म हो जाएगी
और बैसाखी की भी तो मियाद एक दिन पूरी हो जाएगी...
समझ जाओ, संभल जाओ, खुद पर जरा भरोसा जताओ
बैसाखी ने यह सब मुझसे कहा ...।
बेहद दर्दनाक वो मंजर था
हाथों से छूट रहा बैसाखी था
और आंखों से बेतहाशा बह रहा आंसू था .....