उठाकर कदम चल पड़े हम कहीं
उठाकर कदम चल पड़े हम कहीं
जो उठाकर कदम चल पड़ें हम कहीं,
तो न समझो कि हम को मुहब्बत नहीं,
दिल के हाथों न होते जो मजबूर हम,
तो न उठते हमारे कभी ये कदम,
फलसफा जिन्दगी का यही है रहा,
फासले कितने हों, दूरियाँ ना रहीं,
जो उठाकर कदम चल पड़ें हम कहीं,
तो न समझो कि हम को मुहब्बत नहीं।।
अब से पहले तो ऐसे ना हालात थे,
हर तरफ गुमशुदा तेरे जज्बात थे,
आज भी अक्स शीशे में दिखता तेरा,
फिर भी जब हम मिले क्यों लगे अजनबी,
जो उठाकर कदम चल पड़ें हम कहीं,
तो न समझो कि हम को मुहब्बत नहीं।।
जो न थकती थी आंखें तेरे दीद से,
आज खुलती नहीं, एक उम्मीद से,
ख्वाब टूटे न वो जो आँखों में बसा,
आस ये आखिरी रह गयी है वहीं,
जो उठाकर कदम चल पड़ें हम कहीं,
तो न समझो कि हम को मुहब्बत नहीं।।
बस मेरे इश्क़ की है रवायत यही,
जो दुआ है मेरी ,वो तेरी आयत नहीं,
हसरतें फिर तेरी हों मेरे अरमान अब,
उम्र भर दिल में बस, ये ही चाहत रहीं,
जो उठाकर कदम चल पड़ें हम कहीं,
तो न समझो कि हम को मुहब्बत नहीं।।

