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Sudershan kumar sharma

Tragedy

4  

Sudershan kumar sharma

Tragedy

दूरियां

दूरियां

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दूरियां अपनों से आसमां तक हो गईं, 

जमीं पर थे हम पर फासलों तक खो गईं। 

चाहतें खूब रखीं आसमां को भी छूने की,

कदम वढ़ाये उड़ने के लिए मगर राहें ही खफा़ हो गईं। 

कदम जमीं पर थे जमीं पर ही रहे, 

मंजिलें अपनी थी ही नहीं

वो आसमां हो गई

दूरियां अपनों से आसमां जितनी हो गईं,

जमीं पर थे हम पर  यह  फासलों तक खो गईं। 


अपने ही दूर करते रहे उजालों में वैठकर, 

नजदीकियां अंधेरों से दूरियां उजालों से हो गईं। 

सोचा था अपने तो अपने ही होते हैं मगर उनकी सोचें हमसे बेवफ़ा हो गईं, 

दूरियां आसमां जितनी हो गईं जमीं पर रहे हम पर वो फासलों में खो गईंं। 

शिकायत किस से करे अब सुदर्शन, 

सांसें थीं जो अपनी छोड़ रहीं हैं साथ गमगीन होकर की बहुत दौड़ाया है तूने अपनों के लिए हमें, 

जरूरत है हमें भी आजाद होने की कह कर तन्हा हो गईं। 

दूरियां अपनों की आसमां तक हो गईं

जमीं पर थे हम पर फासलों तक खो गईं। 



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