इश्क दोनो ने किया ,
फिर भी सज़ा मुझे ही मिली ,
क्या कमी थी मेरी वफ़ा में ?
जो इतनी बिगड़ी हुई तकदीर मिली |
तेरे नाम से ज़िन्दा हूँ आज भी ,
तुझे खोने का कोई गम नहीं ,
चाहत ~ए ~वफ़ा यही तो है ,
जिसमे जीने - मरने का कोई गम नहीं |
मिसाल ~ए ~इश्क बन गए हैं हम ,
दुल्हन नहीं विधवा ही सही ,
बिना ज़िस्मानी संबंध के भी ,
निभा रहे रूह ~ए ~संबंध |
गर ये इश्क मर्द करता ,
तो कब का बहक फिसल जाता ?
वफाओं का रिश्ता सच कहें तो ,
औरत की वफ़ा में ही नज़र आता |
बंद होंगी ये पलकें जिस दिन ,
लबों पे सिर्फ तेरा नाम होगा ,
हजारों भूखी निगाहों की सरगर्मी से ,
इस ज़िस्म का काम - तमाम होगा |
शौक ~ए ~उम्र गुजार दी हमने ,
तेरे एक इशारे पर हो कुर्बान ,
तू पहले चला गया बस ,
हम आज भी दे रहे इम्तिहान ||