दहशत
दहशत
लहू का दरिया ना बहा दे
तपतपाती रेगिस्तान में
खून के आंसू पिलाने वाले वे
दरिंदगी उनके सातवें आसमान पर
कौन हैं वे भूखे भेड़िए ??
इंसान के भेष में
गोला-बारूद की जुबान वे बोलें
खौफ फैलना मजहब उनका
आज जो चुपचाप घर बैठे
तमाशा देख रहें हैं
कल अगर ख़ुदा रुसवा हो के
हर गुनाहों का फ़ैसला सुना दे तो ??
कहीं तुम सब भी ना आ जाओ
उसकी चपेट में
आवाज़ ना उठाना भी एक गुनाह है
इतनी-सी समझदारी तो है सब में
इंसानियत का ना कोई मजहब है
ना कोई सरहद
बेजुबान बन जीते जी मर जाने से
कई गुणा बेहतर है शहादत
दहशत का काम ही है
ज़लज़ला सा फैल जाना
कहीं अगली बार दस्तक ना दे जाए
तुम्हारे दरवाजे पर
खून से लथपथ लाश तुम्हारा
पड़ा होगा किसी चौराहा पर
हो के उनका अगला शिकार
खुदगर्जी की मातम से बेहतर है वार करना ।।