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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

आहट

आहट

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कुचले जाते है पैरो से असंख्य जीव जंतु

याद आती हैं सहमते हुए पैरों के आहट की 


वक्त बेवक़्त आता है तूफ़ान यहाँ

याद आती हैं पहाड़ जैसे मजबूत वजूद की 


होते है कत्ल यहाँ रोजाना अमानुष

याद आती हैं हाथी जैसे भयंकर दहाड़ की 


डूब जाती हैं धरती गहन अंधेरे में

याद आती है सूरज के सहस्त्र प्रकाश किरणों की 


अराजकता मची है समानता के नाम पर

याद आती है फाँसी पर लटके शहीदों की 


बंजर बनी पड़ी है धरती दूर दूर तक 'नालंदा '

याद आती हैं जल थल बरसते बरसातों की 


भँवरा चखता है बे रोक टोक फूलों की सुगंध 

याद आती हैं त्यागते कर्तव्यों के दीवानों की 



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