लड़की होने का एहसास
लड़की होने का एहसास
लड़की होने का एहसास दिला ही दिया जाता है,
संस्कारों के नाम पर बेड़ियों से बांध दिया जाता है,
उठने, बैठने, बोलने के तरीकों से चरित्र आंक दिया जाता है,
कपड़ों के पहनावे तक में झांक लिया जाता है,
लड़की होने का एहसास दिला ही दिया जाता है,
मर्यादित रहना यहीं बचपन से सिखा दिया जाता है,
देर रात घर आना चरित्रहीन दिखा दिया जाता है,
परंपराओं और मान के नाम पर समझौता करना सिखा दिया जाता है,
लड़की होने का एहसास दिला ही दिया जाता है,
इतना ही नहीं विवाहित होने के बाद बहू के रूप में बांध दिया जाता है,
पिता की जगह पति हो स्वामित्व दिया जाता है,
लड़की होने का एहसास दिला ही दिया जाता है,
मायके से ससुराल तक न जानें कितने रंगो में ढल जाती है,
इतने पर भी हंस कर सब सह जाती है,
कोई भी निर्णय लेने के लिए अधीन बना दिया जाता है ,
लड़की होने का एहसास दिला ही दिया जाता है।
