मैं श्रमिक-सुत बोल रहा हूँ।
मैं श्रमिक-सुत बोल रहा हूँ।
मैं भारत के मजदूर का बेटा हूँ।
मैं भी अपने किसानों के साथ बैठा हूँ।
मैं भूल नहीं सकता कभी, जो दौर चला है।
मुझे कई बार मेरे इसी अन्नदाता ने भी छला है।
खेत में, खलिहान में, इसने भी मेरा दिल तोडा है।
लेकिन मैंने कभी इसका साथ नहीं छोड़ा है।
हाँ ये सच है, सारे किसान भी, एक जैसे नहीं हैं।
जैसा मैं जो बोल रहा हूँ, सारे वैसे नहीं हैं।
सच है, नकली राष्ट्रवादी मुझे आवारा समझते हैं।
सबसे ज्यादा तो मजदूरों को ही नकारा समझते हैं।
लोग ऐसा जाहिर करते हैं, देश के विकाश में।
मेरा कोई योगदान नहीं है।
मेरा और मेरी पीढ़ियों का तो कोई अहसान, सम्मान नहीं है।
ये मेरी उपेक्षा का ही फल है,
सरकार जो दबाव डाल रही है।
देश की जी. डी.पी. जमीन की
गहराईयों से पानी निकाल रही है।
मैंने देखा है अपना तिरस्कार, अपमान,
कोरोना काल में , मैं खून के आँसू रोया था।
तब मेरे साथ कोई न था, में भूखा ही सोया था।
शहरों से निकल कर, जितना पैदल ही भागा हूँ ,
ऐसा कभी नहीं भागूँगा।
रेल की पटरियों पर ऐसा सोया हूँ,
जैसे अब कभी नहीं जागूँगा।
मैं अपने दिल की टीस सबके आगे खोल रहा हूँ।
मैं किसानों के साथ हूँ, 'श्रमिक सुत' बोल रहा हूँ।
अगर आपस में एक दूसरे का हम साथ नहीं देंगे।
एक दूसरे के दुःखों की , हम मिलकर खबर नहीं लेंगे।
तो दोनों के गले में वो 'पट्टे' डाल देंगे, मैं ऐसा तोल रहा हूँ।
तन-मन से अन्नदाता के साथ हूँ, मैं श्रमिक सुत' बोल रहा हूँ।