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Amar Singh Rai

Abstract Inspirational Others

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Amar Singh Rai

Abstract Inspirational Others

परिवार

परिवार

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एक वंश के लोग जब, रहें एक घर- द्वार।

तब कहलाता है यही, भारतीय परिवार।।


अब एकल परिवार हैं, साथ नहीं हो मात।

पति-पत्नी बच्चे गिनें, किंतु गिनें न तात।।


चाचा ताऊ साथ थे, मिलकर करते काम।

होता था परिवार का, सबसे ऊपर नाम।।


रिश्ते कड़वे हो चले, मन में रहती डाह।

किसे पड़ी परिवार में, कौन करे परवाह।।


किस्से दादी के हुए, जाने कहाँ विलुप्त।

अब देखो परिवार में, लोग सुन्न-से सुप्त।।


भाग हुए परिवार के, और बट गए गेह।

तात पड़ोसी हो गया, नहीं बचा अब नेह।।


पहले मुखिया एक जन, था परिवार विशाल।

दादा- दादी साथ थे, तब थी बात कमाल।।


              


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