चेहरा कहीं दिखा न पाएँ
चेहरा कहीं दिखा न पाएँ
चलो लिखें कुछ उनकी बातें,
जो खुद न कुछ कह पाएँ ।
जाति-धर्म, मन्दिर-मस्ज़िद पर,
कविता लेख कई लिख डाले।
राजनीति कर रहे पुजारी,
मठ, महंत कई डेरा डाले।
चलो लिखें अब उनके हित की,
अपनी बात जो कह न पाएं...चलो लिखें,
वीर, करुण, श्रृंगार, हास्य रस,
लिखने वाले पीड़ा लिख।
ज़ुल्म-सितम करने वालों को,
और नहीं तो कीड़ा लिख।
चलो लिखें पीड़ित की पीड़ा,
जो पीड़ा वह सह न पाएं...चलो लिखें.
ध्यानाकर्षण करने के तो,
और बहुत से काम पड़े हैं।
नख-शिख सुंदरता का वर्णन,
करने को कई लोग खड़े हैं।
चलो राष्ट्र के लिए लिखें कुछ,
और नई कोई राह दिखाएं..चलो लिखें,
लोभ, स्वार्थ, पद-नाम हेतु यूँ,
नाहक न गुणगान करें।
कोई अच्छा काम करे तो,
हम उसका सम्मान करें।
चलो गिनाएँ उनकी मेहनत,
और मनोबल मान बढ़ाएं...चलो लिखें,
श्वेत वस्त्र धारित जो खादी,
उनका अंतस भी झाँको।
माइक, माला, मंच, घोषणा,
पूर्ण करो या न फांको।
चलो लिखें इनकी करतूतें,
चेहरा कहीं दिखा न पाएँ ...चलो लिखें।
