STORYMIRROR

Amar Singh Rai

Others

4  

Amar Singh Rai

Others

बेढंगी राजनीति

बेढंगी राजनीति

1 min
221


आकाशवाणी के लिए,

  भेजा लिख हास्य-व्यंग्य।

     पढ़कर के अधिकारी,

         भौचक्के हुए दंग।


पत्र भेज करके,

    केंद्र पर बुला लिया।

      और पास कुर्सी पर, 

         मुझको बैठा लिया।


फिर बोले बन्धुवर,

   आप क्या लिखते हो?

     लिखने में रंच मात्र,

       बिलकुल न डरते हो..?


मैने कहा श्रीमान,

   बताइए क्या हुआ है?

      लिखने में मात-पिता,

        पूर्वजों की दुआ है।


कहने लगे जानते हैं,

   राजनीति बेढंगी है।

      राजनीति पर खींची,

         तस्वीर बहुरंगी है।


जानते हैं भृष्टाचार,

   बढ़ा है चरम पर।

      और कुछ नेता भी,

         जीते हैं अधरम पर।


माना कि कुछ लोग,

    भृष्ट हैं निकृष्ट हैं।

        इनसे सभी लोग,

           परेशान, त्रस्त हैं।


असली चेहरा इनका,

   बिल्कुल दिखता नहीं।

      इनके ख़िलाफ़ कोई,

         साधारण लिखता नहीं।


हमी-आप इनकी यदि,

    करतूतें गिनाएँगे।

       तो फिर ये हो-हल्ला,

         आंदोलन कराएँगे।


मानता हूँ सुधार की,

   कम हैं सम्भावनाएँ।

     लेकिन प्रसारण की,

       भी हैं कुछ सीमाएँ।


लिखो- कि साँप मरे,

    लाठी भी टूटे न ।

      जनता समझ जाए,

        नेता भी रूठे न ।


राजनीति धंधा बना,

   बदली अवधारणा।

    लिख दो कि लोगों की,

       गलत है ये धारणा।


हमने कहा-जी नहीं,

  हमसे नहीं होगा।

    प्रसारण यहाँ न सही,

      तो कहीं और होगा।


वो बोले लगता है,

   अंदर से रोष है।

     लेकिन लिखा है सच,

       इस बात का सन्तोष है।


जाइये जी आपका,

   प्रसारण हो जाएगा।

     जो होगा अंत मे,

       देख लिया जाएगा।

          ----००---

 

         



Rate this content
Log in