नारी
नारी
है जो अनोखा आविष्कार प्रभु का
निभाती जो हर रिश्ता मन से,
ना जाने होते कितने ही रूप जिसके
नाम है उसका नारी।
कभी बेटी बनके घर में खुशियाँ लाए
कभी बहन बनके होसला दे,
कभी बहु बनके लक्ष्मी लाए
कभी पत्नी बनके हमसफर बन जाए
तो कभी माँ बन के जिंदगी दे जाए।
बाँट कर अपनी खुशियाँ सब में
समेट लेती है सबके गम खुद में,
दिल में छुपाए दर्द वो हँसती है
जाने कितने ही कुरबानी देती हैं,
है हँसने की वजह सबकी
नाम है उसका नारी।
