वो महफिले अब नही सजती
वो महफिले अब नही सजती
वो मेरे दोस्त कहीं खो गए वो मेरे साथी मेरे हमसफ़र कहीं खो गए,
जिनके साथ मिलकर हम कभी शेरो शायरी की महफ़िल सजाते थे,
दोष उनका नही इसमे कोई हम ही इस दुनिया को अलविदा कह आये थे,
वो उनकी नही हमारी मजबूरियाँ थी कि हम सबसे दूर हो आये,
सोचा नही था कि फिर इन गलियों से कोई रिश्ता नाता होगा,
फिर लौट कर हम उनको तलाशेंगे और वो हमको ना मिलेंगे,
अब रौनक नजर नही आती उन महफ़िलो में,
और हम भी अपने और कामों में ज्यादा मश्गूल रहते है,
कुछ पलों के लिए जो इन महफ़िलो में जाते है,
अपना हाले दिल बयान करके लौट आते है,
वक्त ही नहीं अब किसी से मौज मस्ती करने का,
ये महफिले अब पहले की तरह सजती नहीं।
