अच्छी औरतें
अच्छी औरतें
कितनी बेवकूफ होती हैं पति के लिए
बिना खाये पिये
इंतज़ार करने वाली औरतें।
वो पति जो पूछता भी नही
तुमने खाया या नही।
कितनी लाचार होती हैं वो औरतें
जो हाथ अपना
जला बैठती हैं खाना पकाते वक़्त
और बता भी नही पाती
सिर्फ इसलिये ताकी
खाने वाले के स्वाद मे
किसी तरह का व्यावधान न हो।
कितनी मजबूर होती हैं वो लड़कियाँ
जो अपने सपने छोड़ देती हैं बड़ी सहजता से
माँ बाबा के लिए।
कितनी अभागी होती हैं
चिड़ियों सी चहचहाने वाली
वो लड़कियाँ जब कैद की जाती हैं पिंजड़े मे ,
अपने सपने और ख्वाहिशों के घुटे गले के साथ।
और यही इतिहास जब उनकी
बेटियों के साथ दोहराया जाता है
तो बनी रहती हैं मूक दर्शक
कई बार एक औरत सिर्फ
अच्छी औरत कहलाने के लिए
घोंट देती हैं अपनी बेटियों के
ख्वाहिशों का गला बड़ी बेदर्दी से।
