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Sudha Sharma

Inspirational

4  

Sudha Sharma

Inspirational

अनंत सुख की चाह

अनंत सुख की चाह

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 कविता

अनंत सुख की चाह में,

स्वतंत्रता की राह में 

नव विचार मिल गया, संस्कार हिल गया 

कर्तव्यपथ बिसर गया, अधिकार निखर गया 

आकाश कुसुम खिल गया ,लिव इन रिलेशन खिल  गया ।।

 

सोचा पहले साथ हो, व्यवहार की जांच हो 

तत्पश्चात विवाह का, सांस्कृतिक व्यवहार हो 

कंटक कोई घाव न दे, रिश्ता कोई भाव न दे 

दो मानव का जीवन हो अन्य कोई छांव न दे 

भाव यह प्रखर हुआ,

बाकि सब बिसर गया ।

नैतिकता की राह में, शूल सा मगर भया ।

विश्वास यह दृढ़ हुआ,

मन ने संकल्प लिया।

नव रीति गढ़ कर मन पूर्ण विश्वस्त हुआ 

दृढ़ कामना में ढल गया लिव इन रिलेशन खिल गया। 


मान्यता बेकार थी ,नई किरण की चाह थी 

सहनशक्ति गुम गई, इगो हर्ट हो गई ।

पुष्प भरी क्यारियां अंगार में बदल गई 

केवल कानून साथ था, रिश्ता कोई पास न था 

धन की कोई कमी नहीं,

संस्कारों की नमी नहीं ।

नई शिक्षा की रोशनी ,धर्म की कोई जमीं नहीं ।

मन अहम् से चूर-चूर 

आधुनिकता का था गुरूर 

मन में इतना रोष था परंपरा पर क्रोध था

सोल्यूशन  मिल गया, लिव इन रिलेशन खिल गया।


विवाह अब शूल था, व्यर्थ और फिजूल था 

संतान के नाम पर ,विचार न अब कबूल था

व्यर्थ जिम्मेदारी है पर्वत से भी भारी है 

जीवन के आनंद में, कंटक भरी क्यारी हैं 

मस्ती की बयार में,

जीवन सुख की आस में, 

विवाह गौण हो गया , समाज मौन हो गया।

अस्तित्व का मलाल था, 

प्रतिष्ठा का सवाल था

सामाजिक दायित्व भूल गया जीवन लक्ष्य निर्मूल भया

स्वान्त: सुखाय है टेस्टल हुआ लिव इन रिलेशन खिल गया। डॉ सुधा शर्मा आर्या मेरठ


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