स्वयं से वादा
स्वयं से वादा
मेरा स्वयं से वादा है, मैं सूरज बनकर आऊॅंगा
चाहे कितना तम छा जाए, मैं रश्मि पुंज बन जाऊॅंगा
मैं सूरज बनकर आऊंगा मैं सूरज बनकर आऊंगा।।
कुहरे, धुॅंध, पाले सर्दी से, धरणी कॅंपकॅंपाएगी,
शस्य श्यामला की संतति, जीवन को तरस जाएगी ।
घाटी के गहनतम तल से, स्वर्णिम आभा ले आऊॅंगा,
जीव जंतु और वनस्पति को,जीवन सोम पिलाऊॅंगा।
मैं सूरज बनकर आऊंगा,मैं सूरज बनकर आऊंगा।।
नभ के विस्तृत वक्ष में चाहे, द्युति गरज धरा धमकाए,
अपनी गरज तड़क से चाहे, धरनी को पंगु बनाए।
सागर के निम्नतम तल से, स्वर्णिम आभा ले आऊंगा,
सारी धरती के आंगन को, निर्भय फिर मैं बनाऊॅंगा।
मैं सूरज बनकर आऊॅंगा, मैं सूरज बनकर आऊंगा।।
जो बीज अभी मौन पड़े हैं, या धरती में गौण गड़े हैं,
कुंठा शोषण तिरस्कार में, ईश प्रसाद से दूर खड़े हैं।
हृदय के गहनतम तल से, मैं मानव भाव ले आऊंगा,
उनके अश्रुओं को पोंछकर, अमृत सम पी जाऊॅंगा।
मैं सूरज बनकर आऊॅंगा मैं सूरज बनकर आऊॅंगा।।