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Soniya Jadhav

Tragedy

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Soniya Jadhav

Tragedy

पलायन

पलायन

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शहरों में भीड़ ही भीड़ है,

गांवों में सन्नाटा है

पहाड़ गुमसुम खड़े हैं,

अकेले ही अकेलेपन से मानो लड़ रहें हो।

गंगा आवेश में है , जैसे निकल पड़ी हो

अपनी ही संतानों की घर वापसी के लिए।

पिता अपने हुक्के में सिमट कर रह गया है,

माँ चूल्हे में ठंडी पड़ती आग को,लगातार गर्म करती जा रही है।

ना जाने किस पहर बेटा घर आ जाये और कहे माँ भूख लगी है।

हर घर में रोज़ एक ही उम्मीद जलती है शाम को,

शायद आज वो शहर छोड़ घर वापिस आ जायेगा।

पहाड़ को छोड़कर फिर कभी नहीं जायेगा।

आबाद कर देगा फिर से वो जंगल और अपनी माँ का दिल,

क्या पता गाँवों में जीवन फिर से लौट आयेगा।

पहाड़ टूटकर बिखरेंगे नहीं, ना नदियाँ अपना आपा खोयेंगी,

बस जायेंगे उत्तराखंड के गाँव फिर से,

पलायन शब्द पहाड़ों में फिर कभी गूंज नहीं पायेगा।


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