तुम्हें क्या मिलता है?
तुम्हें क्या मिलता है?
अदिवासी भी कोई हिन्दू
कोई सनातन कोई ईसाई है;
ए दोस्त,!जात-पात की
बातें बोलकर क्या मिलता है?
कब तक लड़ते रहेंगे इस तरह
हम आपस मे ही रोज रोज;
धर्म के नाम पर भेदभाव
करने से तुम्हें क्या मिलता है?
देखो जरा हम आदिवासियों की
दशा एक दफा गौर से;
हमारी जमीनें लुट रही है
पलक झपकते झपकते।
हमारी संस्कृति भी तो
लुप्त होती जाती है धीरे-धीरे;
अब बोलो आपस में ही
लड़ने से तुम्हें क्या मिलता है?
रोड किनारे हटिया में
हाड़ियाँ दारू बेचते नजर आते है;
पूर्वज तो इसका उपयोग केवल
धार्मिक कामों में ही किया है।
दारू बेचते महिलाओं को देख
लगता क्या ये हमारी संस्कृति है?
इनपर गौर करो इधर-उधर की
बाठें करने से तुम्हें क्या मिलता है?
आदिवासी एक आदिवासी थे
और अब भी आदिवासी ही है;
न तो वो हिन्दू है और नही
ईसाई है ना ही कोई और हैं ।
वो तो सच्चे और अच्छे इंसान हैं
वो प्रकृति प्रेमी है उनका दिल तो निर्मल है;
इनको धर्म के नाम से लड़ाने से
तुम्हें क्या मिलता है??
कोई तो डर से कई तो लाचार
और कमजोर हुए चले है;
आपस मे एकता और एकजुट
होने की जरूरत है सबको।
इस घड़ी में तुम जाति-धर्म
और भेदभाव के पाठ पढ़ा रहे हो,
लोगों के एकता में फूट डालने से
तुम्हें क्या मिलता है???