STORYMIRROR

Sunita Shukla

Tragedy

4  

Sunita Shukla

Tragedy

एक सफर........!!!

एक सफर........!!!

1 min
216

यादों में पड़ी धुंध जरा छँटने दो

धूल की गर्त को अब हटने दो

आने दो फिर सामने उन बातों को

जिन्हें वक्त ने दफन कर दिया

और लोगों ने भी भुला दिया।।


माना कि उस दिन मैं गलत थी

पर तुमने कब मेरे बारे में सोचा

क्या मेरा वो आवेग....

उन उलाहनों की परिणति नहीं थी

जो हर वक्त मेरे नाम पर दर्ज हुए।।


थक चुकी थी दिन-रात की दलीलों से

और फिर एक वो दिन भी आया

दिल ने कहा बस अब और नहीं

दिमाग में भी कुछ खयालात आये

और मैंने अपने दिल की बात सुनी।।


सहनशक्ति की पराकाष्ठा तक पहुँचकर

वक्त था मुड़कर देखने का और सोचने का

क्या यही दुनिया थी मेरे ख्वाबों की.....!!

आखिर किससे और कहाँ चूक हो गई

जो कड़वाहटों का सिलसिला चल पड़ा।।


अंतर्मन से एक आवाज आई

और एक पल में सोच लिया

खत्म करने की तुम्हारी हर शिकायत

जब मैं ही नहीं तो शिकायत किससे

शायद तब तुम भी सुकून से रह सकोगे।।


और कदम बढ़ चले

एक ऐसे सफर की ओर.....

जहाँ से कोई कभी लौटकर नहीं आया

खत्म हो गये सारे शिकवे और इल्जाम

क्योंकि अब तो मैं पहुँच गई वहाँ ....

जहाँ सिर्फ यादें ही रह जाती हैं शेष...!!!

                      


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy