एक सफर........!!!
एक सफर........!!!
यादों में पड़ी धुंध जरा छँटने दो
धूल की गर्त को अब हटने दो
आने दो फिर सामने उन बातों को
जिन्हें वक्त ने दफन कर दिया
और लोगों ने भी भुला दिया।।
माना कि उस दिन मैं गलत थी
पर तुमने कब मेरे बारे में सोचा
क्या मेरा वो आवेग....
उन उलाहनों की परिणति नहीं थी
जो हर वक्त मेरे नाम पर दर्ज हुए।।
थक चुकी थी दिन-रात की दलीलों से
और फिर एक वो दिन भी आया
दिल ने कहा बस अब और नहीं
दिमाग में भी कुछ खयालात आये
और मैंने अपने दिल की बात सुनी।।
सहनशक्ति की पराकाष्ठा तक पहुँचकर
वक्त था मुड़कर देखने का और सोचने का
क्या यही दुनिया थी मेरे ख्वाबों की.....!!
आखिर किससे और कहाँ चूक हो गई
जो कड़वाहटों का सिलसिला चल पड़ा।।
अंतर्मन से एक आवाज आई
और एक पल में सोच लिया
खत्म करने की तुम्हारी हर शिकायत
जब मैं ही नहीं तो शिकायत किससे
शायद तब तुम भी सुकून से रह सकोगे।।
और कदम बढ़ चले
एक ऐसे सफर की ओर.....
जहाँ से कोई कभी लौटकर नहीं आया
खत्म हो गये सारे शिकवे और इल्जाम
क्योंकि अब तो मैं पहुँच गई वहाँ ....
जहाँ सिर्फ यादें ही रह जाती हैं शेष...!!!