प्यासे प्राण,,
प्यासे प्राण,,
उड़ा ले गया नींदें मेरी वो
अब सपनों के इधर न लगते फेरे।
उम्मीदों की बैसाखी लेकर
मंज़िल पाने के सब आस अधूरे।
धड़कन पल-पल राहत खोजे
अंजित नैन को अश्रु जल घेरे।
बैरी चाँद कह तो ज़रा आकर
प्रीतम के पग कब करेंगे फेरे ?
दरस की बूँद स्वाति पीने को
प्यासे प्राण सीप हुए मेरे।
क्या मैं ही यहाँ आकुल जी ती
मुझ बिन तनिक न बिछोह उर तेरे।
बैरी चन्दा गगन में घटता-बढ़ता
तुम बिन दिन-रात मावस हुए मेरे।