माँ के आँचल -सी हरियाली
माँ के आँचल -सी हरियाली
कंद-मूल,बेर,जामुन ,इमली चुन कर
चलती हम रोज़ वन से घर की ओर।
ढाक पात से पत्तल-दोने बुनती
सपनों के करती घटाव और जोड़।
जीवन का ताना-बाना उतना चलता है
जितने से हो सुबह से सांझ और भोर।
प्रकृति की अनुपम दाय मिली हमको
सहेज रखते हम जीवन से बंधी ये डोर।
वन,पर्वत में औषधियों का अतुल्य भंडार
आदिवासी रहते संग पशु,पंछी और मोर।
लेना बस उतना ही जिससे जीवन चल जाए
नहीं करते भंडारण,कहलाते हैं सिरमौर।
पर्यावरण की गोद में हम वैसे ही ख़ुश हैं
माँ के आँचल-सी हरियाली दिखती जब चहुं ओर।
राह आसान नहीं पर इन दुष्कर राहों में
बिछती हरी कोमल कालीन वन से घर की ओर।
हमसे सीखो हे मानव,जीवन जीने का ढब
प्रकृति राग साधो जो ले जाये रब की ओर।