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Bhoop Singh Bharti

Tragedy

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Bhoop Singh Bharti

Tragedy

कलकल करता मैं बहूँ

कलकल करता मैं बहूँ

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कलकल करती मैं बहूँ, पहाड़ अर  मैदान

लहराती सी  मैं  चलूँ, अदभुत  मेरी  शान।


अदभुत  मेरी  शान, धरा को दूँ हरियाली

मैं जन गण की प्यास, बुझा ल्याऊं खुशहाली।


नदी की आत्मकथा, सिसकती नदिया मरती

कूड़े  कचरे  संग, बहे ना कलकल करती।


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