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Rashmi Lata Mishra

Romance

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Rashmi Lata Mishra

Romance

नदी के पार

नदी के पार

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वादा था इरादा था

गोरी थी नदिया पार

मिलन की चाह भी थी

दिल भी था बेकरार।


सँवर-सँवर रोज, खड़ी

दर्पण के द्वार

आज चली जाऊँगी

पूरा करने करार।


मजबूरियाँ परिस्थितियां

करती थी लाचार

सुबह से शाम तलक

मजदूरी का भार।


एक दिन कह पक्का वादा

कल का कर इकरार

सांझ ढले आ जाऊँगी

साजन तेरे द्वार।


रात भर जगता रहा

करता रहा इंतजार

सुबह के आठ बजे 

सुना था संसार।


नैनो को मलती

हड़बड़ाई सुन पुकार

सिर पर सूरज है

क्या यूँ ही मनेगा एतवार।


हाय रात का क्या करूँ ?

बैरन नींद के वार

शर्म सहित मलाल है

भेजूँ क्या उपहार।


कैसे मनाऊँ रुठ गया

सजन जो नदिया पार

सजन जो नदिया पार।


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