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Jyoti Verma

Abstract

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Jyoti Verma

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इंसान इतना आजाद कहाँ है

इंसान इतना आजाद कहाँ है

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इंसान इतना आजाद कहाँ है 

जिधर देखो 

जंजीरों का जाल बिछा है 

कहीं जंजीरे रिश्तो की 

कहीं भावनाओ की 

उथल पुथल ने अन्तेर्मन

शिथिल किया है 

इंसान इतना आजाद कहाँ है


कहीं जंजीरे 'मन के अंधेरो 'की 

कहीं 'इच्छाओ के भंवर ' ने 

मानव को जकड़ा हुआ है 

इंसान इतना आजाद कहाँ है 

कहीं जंजीरे ज़रूरतों की 

कहीं ऐशो आराम की चाहत 

ने इंसान को पकड़ा हुआ है 

इंसान इतना आजाद कहाँ है 


कहीं जंजीरे कर्तव्यों की सनक भी 

कहीं हको के लालच ने 

मानव को बाँध सा रखा है 

इंसान इतना आजाद कहाँ है 

कहीं मजबूरियों की जंजीरों का 

जाल बुना है 

तो कहीं कायदों के फायदे 

की रिवायत ने इंसान को बहका रखा है 

इंसान इतना आजाद कहाँ है।


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