तजुर्बा
तजुर्बा
तजुर्बा कोई ठोकर नहीं
ये तो पत्थर पर घिसी रस्सी के निशां हैँ
जो इंसान खुद को वक़्त के साथ घिसा कर पाता है
ये न वक्त बीतने से न वक्त काटने से
बल्कि वक्त साधने से इन्सान पाता है!
तजुर्बा कोई ठोकर नहीं
ये तो पत्थर पर घिसी रस्सी के निशां हैँ
जो इंसान खुद को वक़्त के साथ घिसा कर पाता है
ये न वक्त बीतने से न वक्त काटने से
बल्कि वक्त साधने से इन्सान पाता है!