जीवन की दौड़ में
जीवन की दौड़ में
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जीवन की दौड़ में
कुछ जल्दी और
कुछ ज्यादा की
चाहत में
न जाने क्या क्या
छूटा
क्या क्या बदला
और क्या क्या
हमने बदल डाला
कभी सुख सुविधा
की चाहत ने
तो कभी
सकूँ की तलाश
में हमने
तस्वीरो को
नित नया ढाला
बदलाव के इस
चक्र में
हमने न जाने
क्या क्या
भुला डाला
भगवान कब ईश्वर
हो गए
पता ही न चला
इन्सान सारे
हिन्दू, सिख, ईसाई,
मुस्लमान हो गए
सब ने होश गवां डाला
जीवन की दौड़ मे
कुछ जल्दी और
कुछ ज्यादा की
चाहत में
न जाने क्या क्या
छूटा