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Jyoti Verma

Fantasy

4.5  

Jyoti Verma

Fantasy

इस स्वतंत्र प्रण रहे

इस स्वतंत्र प्रण रहे

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इस स्वतंत्र प्रण रहे

दृढ़ होंगे प्रण नए

कुछ पल चिंतन मे

कुछ संकल्प सुध के 


बुद्ध के

स्वततंत्र हो मन से

दृढ़ अब ये संकल्प रहे

इस स्वतंत्र अब हम कहे

कहे नही अब चलो सुने

अपनी नहीं, दूजो की जाने

जान के, समझ के


चलो अब तस्वीर सुधारे

मां भारती को फिर से संवारे

संवार के अब और निखारे

हर मन जो निखर जाए

व्यवसथा सारी सुधर जाए


भारत प्रकाशरत हो आए

इस स्वतंत्र प्रण रहे

दृढ़ होंगे प्रण नए।


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