गुनगुन
गुनगुन
आज बहुत दिन बाद
मन गुनगुनाया है,
होंठों पर गीत आये हैं,
विस्मृत पद याद आये हैं।
मन है कि बाहर भाग रहा है,
कुछ करना नहीं ,
शान्त निस्तब्ध होना चाह रहा है
बस यूँ ही बैठी रहूँ मैं।
समय रुक गया है,
सब कुछ ठहर गया है,
न कुछ करना है,
न कहीं जाना है।
सब कुछ अपने पर है,
जितना चाहे सोचो ,
जितना चाहे लिखो,
कहीं कोई व्यवधान नहीं।