नव निर्माण
नव निर्माण
नव निर्माण इस चेतन जगत का
है दायत्व अब मेरा
राह व आह का अंदाज़ समाज में
है बदल अब देना
उमीद की किरणों से समय का
है सही ज्ञान अब लेना
पावन हृदय का पूर्ण रूप से
है आह्वान अब करना
अनुचित त्याग कर सिर्फ उचित को
है धारण अब करना
भीतर से उमड़ती धारणाओं को भी
है व्यवस्थित अब करना
अच्छे -बुरे का भेद समाज में
है स्थापित अब करना
गति का सही अनुमान लगाकर
है सफर तय अब करना
क्योंकि मैं नए पथ की राही हूँ
मैं ही समाज की छवि हूँ
अंधकार में किरणों को फैलाते हुए
पूरब से उगता रवि हूँ
हूँ संवेदना की नाव पर सवार
चली हूँ ढूंढने जीवन का सार
मिटाने मन के भीतर का अंधकार
सूर्य चंद्रमा के उस पार
जानने सृष्टि का आकार
बंधन खोल कर अंतरमन के
चली हूँ सीखने सिखाने
कर्म और कर्ता के मायने
बस सृष्टि में सम्मलित होने.......