नव निर्माण
नव निर्माण
इस चेतन जगत का नव निर्माण
है दायत्व मेरा
समाज में राह व आह का अंदाज़
है बदल देना
उम्मीद की किरण से समय का
है ज्ञान लेना
पावन हृदय का फिर से
है आह्वान करना
अनुउचित त्याग कर उचित को
है दारण करना
अपने भीतर उमड़ती धारणाओं को
है व्यवस्थित करना
समाज में अच्छे -बुरे का भेद
है स्थापित करना
क्योंकि मैं समाज की छवि हूँ
अंधकार में किरणें फैलता रवि हूँ
में बस एक अदना सा कवि हूँ
संवेदना की नाव पर सवार
ढूंढने जीवन का सार
मिटाने मन का अंधकार
सूर्य चंद्रमा के पार
जानने सृष्टि का आकार
चली हूँ सीखने सीखाने
कर्म और कर्ता के मायने
अंतर्मन के बंधन खोलने
बस सृष्टि में सम्मलित होने.......
