कल
कल
क्यों तपिश लिए हुए
सूरत भटकता परेशान है
तो बदलो की ओंठ में
चांद सूरज भी हैरान है
अपनों की भीड़ में
तो कहीं जमीन पर
होकर भी इंसान परेशान है
क्यों नहीं मिलता है
अब अपनों से अपनों का साथ है
क्यों नहीं मिलता है
अब सपनों में भी उनका हाथ है
सोच कर तो देखिए
क्यों तस्वीरों में खो रहे हैं
मिलने पर तो खुश नहीं
बिछड़ने पर रो रहे
आओ अब थोड़ा वर्तमान में भी जी ले
भूल अतीत की राहे अपनों से भी मिले
भविष्य की सोच में कहीं
वर्तमान भी अतीत ना हो जाए
कहीं हम या वे खुद भी
तस्वीरों का हिस्सा हो जाए
भविष्य की चिंता अतीत की यादें
छोड़ अपनों से मिले
ना जाने कल क्या हो
फिर हम मिले या ना मिले.........
