शब्द
शब्द
शब्दों में इतनी ताकत है कि
किसी का भी आचार बदल सकते है
फिर चाहे वे सकारात्मक हो या नकारात्मक।
शब्द ही रिश्तों की कुंजी है,
चाहे रिश्ते बनाने में या बिगड़ने में।
शब्द टूटे हुए धागों को जोड़ सकते है,
दिलों के दरवाजे खोल भी सकते हैं,
लोगों के मुंह भी बंद करवा सकते हैं ,
एक मलहम की भांति शब्द
रिस्ते हुए जख्मों को सहला सकते है,
टूटे हुए दिलों को बहला सकते हैं,
शब्दों की गहराई का आभास होते ही
इनके अथाह सागर से
इंसान की प्रवृति बदल सकती है।
वही नश्तर की भांति बोले शब्द
किसी को आहत कर सकते है
किसी के जख्मों को
नासूर में बदल सकते है।
प्यार के दो बोल
है सबसे अनमोल!
टूटे दिल से दुआओं की
अपेक्षा कैसे कर सकते है ?
"पहले सोंचो फिर बोलो"
का रिवाज हम भूलते जा रहे है,
हम में हम सब शामिल है।
क्या शब्दों को तोल कर बोलना
वाकई में मुश्किल है
या हमारा अंहम
हमारी नकारात्मकता को
और उपजाऊ बनाता है ?
यह तथ्य विचारोत्तेजक है।
शब्दों का चयन
खालिस भाषा नही
हमारे अंतरात्मा की आवाज होती है
जो ब्रह्माण्ड में गूंज कर
वापिस हमसे टकराती है
और हमारे ही व्यक्तित्व को
बिगड़ती है या संवारती है.......
